Thursday, June 27, 2013

ईश्वर का विकल्प नहीं है



आलेख 
जवाहर चौधरी 

केदारनाथ में आए प्रलय और उसके बाद के घटनाक्रम ने हर संवेदनशील मन को विचलित कर दिया है। हम मानते हैं कि ईश्वर अपनी शरण में आए हुओं की रक्षा करता है। हमारी शिक्षा और संस्कार कहते हैं कि ‘‘डरो नहीं, क्योंकि तुम्हारे साथ ईश्वर है’’। ईश्वर कहता है मेरी शरण में आओ. किन्तु समाचार हैं कि अनेक लोग मंदिर के अंदर, ईश्वर की लगभग गोद में थे किन्तु उन्हें कोई बचा नहीं पाया!!
प्रलय जैसी घटनाओं से मनुष्य को जितनी हानि होती है शायद उससे कहीं अधिक हानि ईश्वर को होती है। एक घटना से सर्वशक्तिमान संदेह में आ जाता है और भक्त उसकी उपेक्षा करते दिखने लगते हैं। एक रात में ही भक्त ईश्वर के भय से अपने को मुक्त कर लेता है और उसके आंगन में, उसके ही धन को ले उड़ता है!! मंदिर की दानपेटियां मौका मिलते ही तोड़ी और लूटी जा चुकी हैं! आस्था रखने वाला समाज जिन्हें साधु-संयासी कहता बिछा-बिछा रहता है, आज वह देख रहा है कि उनके झोले से लूट के लाखों रुपए और आभूषण निकल रहे हैं!! मौके का पाशविक लाभ लेते हुए तमाम लोग लाशों से चांदी-सोने के आभूषण लूटने में लगे रहे!! केदारनाथ मंदिर के पास स्थित बैंक से सारा पैसा लूट लिया गया! पता चला है कि बैंक में पांच करोड़ से अधिक रुपए थे।
प्रश्न यह उठता है कि एक तीर्थ-स्थल यानी धर्मक्षेत्र में अचानक यह पाशविकता कैसे पनप गई ! माना जाता है कि वहां तो पशु-पक्षी भी आस्थावान होते हैं। स्थानीय लोग भी सेवादार होते हैं! कहते हैं कि अनेक हताश, निराश, असफल, कुकर्मी, अपराधी किस्म के लम्पट धर्म की ओट ले कर अपना अज्ञातवास काट रहे होते हैं। उनमें ईश्वर के प्रति न भक्ति होती है न आस्था। आम दिनों में निडर वे ठगी आदि करते हैं और मौका मिलते ही लूटपाट करने से नहीं चूकते हैं। इनकी पहचान कौन करेगा ? निश्चित ही ईश्वर तो नहीं। अगर ईश्वर कर सकता तो अपने भक्तों को मृत्यु नहीं देता जो मोक्ष की कामना से आसिस लेने आए थे। हाल ही में प्रयाग के कुम्भ मेले में लाखों साधु आए और भक्तों ने उनके दर्शन किए। सुनते हैं कि वे वहीं कहीं पहाड़ों में निवास करते हैं। माना जाता है कि चमत्कारी होते हैं, इनके पास शक्तियां-सिद्धियां होती हैं। भक्तों पर या धर्मावलंबियों पर संकट आता है तो वे मार्गदर्शन करते हैं। किन्तु दुःख है कि प्रलय के बाद कोई साधुदल या अखाड़ा बचाव कार्य में सहयोग करता दिखाई नहीं दिया! जो भी मदद मिली वो सेना के जवानों और सरकार से मिली। सेना ही थी जिससे लूटेरे डर रहे थे और उनके ही द्वारा पकड़े भी गए। यदि सेना के जवान नहीं होते तो लुटेरों की बन पड़ती और कोई आश्चर्य  नहीं कि लूट के लिए हत्याओं की खबरें भी आतीं ।
लेकिन जो लौटें हैं वे ईश्वर का ही आभार मान रहे हैं। पूजा-पाठ, कथा-भागवत सब निरंतर रहने वाली हैं। इसके अलावा शायद हमारे पास कोई विकल्प भी नहीं है। रोटी की तरह ईश्वर भी हमारी जरूरत है। जब तक हम रहेंगे, चाहे कितने भी प्रलय आएं, चाहे जितनी भी पाशविकता हो, ईश्वर को मानते रहेंगे। एक व्यवस्था है जो सांसों की तरह चल रही है, और उसका चलाने वाला कौन है हम नहीं जानते हैं।


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Tuesday, June 25, 2013

हम अभिषप्त समूह

                           

आलेख 
जवाहर चौधरी 


इनदिनों दयानंद सरस्वती याद आ रहे हैं। जब वे बालक थे एक बार शिवाले में अन्य भक्तों के साथ बैठे आराधना कर रहे थे। देर रात उन्होंने देखा कि एक चूहा शिवलिंग पर चढ़-उतर रहा है और चढ़ाया प्रसाद खा रहा है। उन्हें आश्चर्य हुआ कि भगवान अपने उपर उछलकूद कर रहे चूहे को हटा नहीं पा रहे हैं! यदि ऐसा है तो वे सर्वशक्तिमान कैसे हुए!! ऐसे भगवान अपने भक्तों की रक्षा कैसे कर पाएंगे जो स्वयं अपनी रक्षा नहीं कर पा रहे हैं!! उस वक्त चैतन्य-बोधि बालक दयानंद के मन में मूर्तिपूजा और अन्य अनेक धार्मिक मान्यताओं व व्यवस्थाओं पर प्रश्न उठे। बाद में अनेक अवसर आए जब उनका शास्त्रार्थ पंड़ितों से हुआ किन्तु उनके संदेहों और प्रश्नों का समाधान नहीं हुआ अपितु पाखण्डी समाज ने उनसे बैर बांध लिया। जैसा कि हम जानते हैं कि आर्य समान के इन संस्थापक की राजस्थान दौरे के समय विष दे कर हत्या कर दी गई।
बहरहाल, उनके वे प्रश्न अभी अनुत्तरित ही हैं। समाज वैसे ही भेड़चाल से चलता आ रहा है। जैसा कि जनमानस की प्रवृत्ति है, निश्चित ही तीर्थयात्रा से पहले लोगों ने ज्योतिषी से अच्छा मुहूर्त निकलवाया है, यात्रापूर्व की पूजा की है, ग्रह-चैघडिया, शुभ-लाभ, दान-पुण्य आदि हर बात को साध कर घर से निकले थे । आज भी पंडितों-बाबाओं की चक्की के साथ घूम रहा हमारा समाज अंधआस्था की मोटी परत के नीचे कुछ भी सोचने-समझने की क्षमता खो कर दयनीय स्थिति में है। हजारों लोग इस आपदा में अपनी जान गंवा चुके हैं किन्तु अन्धविश्वास अक्षत है। धर्मसमर्थक इस पर दंभ कर सकते हैं, लेकिन यह चिंता का विषय होना चाहिए। जो किसी तरह बच आए हैं उनका भी लौट कर पूजा-पाठ, कथा-भागवत में व्यस्त दिखाई देना तय है।
हाल ही में प्रयाग कुंभ मेले से हिन्दू समाज लाखों साधु-संतों के दर्शन कर धन्य हुआ है। यह समाचार कितना दुखद है कि केदारनाथ और अन्य प्रभावित क्षेत्रों में साधुओं ने जम का लूटपाट की!! क्षेत्र से बाहर निकल भागने की जुगत में लगे साधुओं की तलाशी में करोड़ो रुपए नगद और सोने के जेवर बरामद किए जा रहे हैं!! केदारनाथ मंदिर की सारी दान पेटियां तोड़ी जा चुकी हैं जिनमें हजारों रुपए होने का अनुमान व्यक्त किया गया है! मंदिर के पास ही स्टेट बैंक की शाखा पूरी लूटी जा चुकी है जिसमें पांच करोड़ से अधिक नगद राशि थी!

प्रश्न यह है कि एक तरफ तो आस्थाएं इतनी गहरी हैं कि प्रलय से भी हिलती नहीं हैं और दूसरी तरफ कुछ लोग धर्म की नब्ज को इस तरह नापे हुए हैं कि बिना डरे भगवान की नाक के नीचे सब कुछ करते रहते हैं!! वही साधु लोग, सुना है कि लाखों की संख्या में हैं और वहीं पहाड़ी क्षेत्रों में रहते हैं, वे इस आपदा में कहां थे !? जो सिंहस्थ और कुंभ मेलों में अपने लिंग से बड़े बड़े पत्थर खींचते दहाड़ते रहे हैं, क्या वे अपने हाथ-पैर के बल से श्रद्धालुओं को बचाने नहीं आ सकते थे!! आर्थिक दृष्टि से निष्क्रिय, और जिनका अस्तित्व श्रधालुओं की आस्था पर निर्भर है, वे इस समय मुंह छुपाए कैसे बैठे रहे !! सेना के जवान रातदिन जुटे नहीं होते तो लाखों लोगों की गत कीड़े मकोड़ों सी हो जाती। यदि प्रलय का ये पानी हमारी चेतना को भिगोता नहीं है तो मानना चाहिए कि हम अभिषप्त समूह हैं।

Thursday, June 6, 2013

तांत्रिक और उनका माउज़र !!!

         
आलेख 
जवाहर चौधरी  


एक दिन उन्होंने बताया कि उनका माउजर पिस्टल चोरी हो गया है. पिस्टल उनके बेडरूम में, बिस्तर पर तकिये के नीचे रखा रहता था. आश्चर्य हुआ कि घर में इतने अंदर तक कौन जा सकता है भला ! मुझे माउजर की कीमत नहीं मालूम थी, मंहगा होगा यह समझता था. कौन ले गया होगा ? उन्होंने पूछा . मुझे कुछ सुझा नहीं, कैसे सूझता, मैं हमेशा तो वहाँ बना नहीं रहता था. घर में किन-किन लोगों का आना-जाना है यह भी पता नहीं था. मैंने कहा -कहीं रख कर भूल तो नहीं गए हो ..... सब जगह ठीक से देख लिया या नहीं. उन्होंने बताया कि सब जगह देख लिया है. पिस्टल तकिये के नीचे से ही गायब हुआ है.
        वो मेरा परिवार जैसा ही है, समझिए अपना ही घर. बात पुरानी है, उनके घर में मेरा आना-जाना भी काफी था, तब मैं एक कालेज में नया-नया नौकरी पर लगा था, विवाह भी हो चुका था. यानी एक गरिमा और जिम्मेदारी की जद में था और ऐसा मान रहा था कि वे इसी हैसियत से मुझसे परामर्श कर रहे हैं.
       पिस्टल हर किसी के काम की तो है नहीं ! उन्होंने फिर कहा.
       पुलिस में रिपोर्ट डाल देना चाहिए. मैं बोला .
       उन्होंने सहमति जताई लेकिन तुरंत कुछ नहीं किया, कम से कम मेरे सामने तो नहीं.
       पिस्टल नहीं मिली, लंबा समय गुजर गया. इस बीच मैं उनसे मिलता रहा. वे अनमने और खिन्न रहते, कभी-कभी पिस्टल का जिक्र भी करता लेकिन उनकी उदासी और चिंता देख अधिक विस्तार में नहीं जाता.
              एक दिन पता चला कि पिस्टल मिल गई. पुलिस ने एक नामी बदमाश के पास से जब्त की. वे खुश थे. अब सवाल था ही कि उसके पास पिस्टल कैसे पहुंची!! लेकिन इस बात का उत्तर उन्होंने नहीं दिया. मैंने भी ज्यादा शोध नहीं किया, सोचा बड़े लोग, बड़ी बातें. होगा कुछ, अंत भला तो सब भला.
       चार-छ: महीने बाद एक दिन बोले, - पिस्टल चोरी के बाद हम एक तांत्रिक के पास गए थे. उसने क्रिया करने के बाद तमाम बातें बताई. ....... मैं यह सुन कर दंग रह गया कि तांत्रिक ने पिस्टल चोर का हुलिया मुझसे मिलता हुआ बताया. सबसे दुख:द बात यह थी कि इस बीच मेरे आने-जाने पर परिवार के लोगों द्वारा सावधानी पूर्वक निगाह रखी जाती रही. तांत्रिक के कहने पर उनका मुझ पर संदेह बना रहा. बाद में सच्चाई कुछ और निकली तो मुझ पर शंका की यह बात बता कर वे अपने अपराध बोघ से तो मुक्त हो गए. लेकिन चालीस वर्ष हो गए मैं आज भी माउज़र वाले अपनों से डरता हूँ.

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