Sunday, March 21, 2010

* लिपि और भाषा का जीवन


आलेख 
जवाहर चौधरी 

देवनागरी लिपि को लेकर समय समय पर चर्चा होती है । आज स्थितियां ऐसी हैं कि किसी भी ‘भाषाप्रेमी’ का चिंतित हो जाना स्वाभाविक है । युवा पीढ़ी हमें अंग्रेजी में शिक्षा लेती दिखाई दे रही है , विज्ञापनों में अंग्रेजी है , बोलचाल में अंग्रेजी के शब्द चाहे-अनचाहे अपनी जगह बना चुके लगते हैं । एसएमएस और कंप्यूटर ने रोमन लिपि की सत्ता स्थापित कर दी है, ऐसा माना जाता है । इसीलिये अनेक लोगों को लग रहा है कि हिन्दी भाषा मर जाएगी यदि उसे रोमन में नहीं लिखा गया ।


भाषा और लिपि का संबंध शरीर और आत्मा का संबंध है । दोनों हैं तो पूर्णता है । लिपि को केवल माध्यम मान लेना गलती होगी। भाषा में व्याकरण के महत्व को खारिज नहीं किया जा सकता है । लिपि भाषा की पहचान होती है , खासकर उस वक्त जब वह बोली नहीं जा रही है । कोई भी भाषा केवल बोलव्यवहार नहीं है । किसी भाषा के कुछ शब्द सीख कर काम निकाल लेना अलग बात है । महानगरों में कामवाली बाइयां, ड्र्ायवर या होटल के बैरे भी अंग्रेजी बोलते देखे जा सकते हैं किन्तु वे रोमन लिपि को कितना जानते हैं बताना कठिन है । अंग्रेजी माध्यम के स्कूल खुलने के बावजूद आज भी अंग्रेजी हमारे यहां बड़ी समस्या है । अंग्रेजी में स्पेलिंग और व्याकरण की समस्या हमारे यहां चरम पर होती हैं । ऐसे में यह विचार क्यों नहीं आता है कि अंग्रेजी को देवनागरी लिपि में लिखी जाए ? क्या इससे अंग्रेजी को समझना, बोल व्यवहार में लाना ज्यादा आसान नहीं होगा ?

यही नहीं लिपि के साथ भाषा का इतिहास और साहित्य होता है । भाषा की समृद्धता उसके साहित्य में है । लिपि बदलने से संचित साहित्य कोष को कूड़ा बनाने देर नहीं लगेगी ! जीवंत और समृद्ध भाषा बहते हुए पानी की तरह होती है । वह दूसरी भाषाओं के शब्द और साहित्य अपनाती है । हिन्दी में संस्कृत के अलावा अरबी, फारसी, उर्दू, अंग्रेजी आदि भाषाओं के शब्द बड़ी संख्या में प्रचलित हैं । न केवल बोल व्यवहार में अपितु देवनागरी में भी । ऐसे में यदि हम हिन्दी की लिपि बदल देंगे तो भाषा की पहचान समाप्त हो जाएगी । लिपि के साथ छेड़छाड़ संस्कृति और इतिहास के साथ भी छेड़छाड़ है । यदि उच्चारण दोष के कारण किन्हीं क्षेत्रों में कुछ शब्दों को भिन्न प्रकार से या गलत बोला जाता है तो इसका मतलब यह नहीं है कि लिपि का बदला जाना उचित है । अंग्रेजी विश्व के अनेक देशों में बोली-लिखी जाती है किन्तु सब जगह अलग ढंग से । भारत की अंग्रेजी ‘इंडियन-इंग्लिश’ है । हिन्दी में ‘जनता’ को कुछ जगहों पर ‘जन्ता’ बोला जाता है तो यह क्षेत्रीय प्रभाव या उच्चारण दोष है । जहां भी लिपि बदली है हमने भाषा को बिगाड़ा ही है । मसलन योग को ‘योगा’, मौर्य सम्राट अशोक को ‘मोरया सम्राटा अशोका’, मोतवानी को ‘मोटवानी’ , मोतीवाला को ‘मोटीवाला’ श्रीवास्तव को ‘सिरीवास्तवा’ , मिश्र को ‘मिशरा’, शुक्ल को ‘शुक्ला’ बना दिया है । उर्दू का उदाहरण देते हुए कहा जाता है कि उर्दू बोलने वाले अधिकांश पाकिस्तान चले गए और सरकारी तौर पर उर्दू की पढ़ाई बंद हो गई लेकिन अब उर्दू देवनागरी में जिन्दा है । लेकिन हिन्दी भाषी अभी कहीं नहीं गए हैं , न ही हिन्दी की पढ़ाई बंद हो गई है । हिन्दी में के अखबार और पत्र-पत्रिकाएं देवनागरी में छप रहे हैं और उनकी प्रसार संख्या लाखों में व कहीं करोड़ का आंकड़ भी छू रही है । हिन्दी की किताबें हर साल अधिक संख्या में निकल रहीं हैं और साल में कई बार आयोजित पुस्तक मेलों में इनकी बिक्री आश्चर्यजनक बढ़त लेती है । विज्ञान विषयों का हिन्दी में खूब अनुवाद हो रहा है और बिक रहा है । इंटरनेट पर हिन्दी ने बजरदस्त कब्जा कर लिया है । आज मेल ही नहीं किसी भी विषय की जानकारी हिन्दी यानी देवनागरी में डाउनलोड की जा सकती है । हिन्दी ब्लाग संसार में बहुत लोकप्रिय हो गए हैं । हिन्दी भाषी नेता अब संसद में अधिक हैं और बहसें भी हिन्दी में हो जाती हैं । अनिच्छा से ही सही परंतु अब टीवी चैनलों में हिन्दी के चेनल ही मुख्य हैं । लिपि बदलने से हिन्दी को लाभ नहीं हानि ही अधिक होगी ।

Monday, March 8, 2010

* दरवाजे पर मुस्करा रहा है भाई !

    
आलेख 
जवाहर चौधरी 



 यह खबर चिंताजनक है कि असुरक्षा की आशंका के बिना चीन ने अपना रक्षा बजट बढ़ा कर भारत के रक्षा बजट से दुगना कर लिया है । भारत लगातार पाकिस्तान से तनावपूर्ण संघर्ष कर रहा है और पिछले दशक से चल रही आतंकवादी और अलगाववादी, खालिस्तान- आजाद कश्मीर आदि, गतिविधियों से भी जूझ रहा है । इधर तिब्बत और अरुणाचल को लेकर चीन से खतरा दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है । सिक्किम और नेपाल हमारी कमजोर कड़ियां साबित हो रहे हैं । बांग्लादेश केवल मुखमित्र है , उसके करोड़ों नागरिकों की घुसपैठ हमारी आंतरिक संरचना और व्यवस्था के लिये हानिकारक होती जा रही है । चीन न केवल अपनी भूमि से अपितु बर्मा, श्रीलंका आदि देशों की भूमि का उपयोग भी इस उदेश्य के लिये कर रहा है । कोई आश्चर्य नहीं होगा यदि वह पाकिस्तान, भूटान, बांग्लादेश जैसे हमारे पड़ौसियों का इस्तेमाल भी हमारे खिलाफ करे ।

खतरा मात्र सैन्यशक्ति का ही नहीं है । चीन जिस तेजी से भारत के बाजार पर कब्जा कर रहा है वह हमारी दीर्धकालीन अर्थव्यवस्था के चिंताजनक है । चीन का मार्केटिंग मेनेजमेंट भी किसी हमले से कम नहीं है । यह चौंकाने वाली बात है कि उन्होंने विविधतापूर्ण भारत के चप्पे चप्पे का सूक्ष्म अध्ययन किया है । किस क्षेत्र की क्या विशेषता है , वहां किस विचार या मान्यता वाले लोग रहते हैं , कौन से त्योहार मानाते हैं, किन देवी-देवताओं को पूजते हैं, पूजा पदृति क्या है , उनकी जरुरतें क्या हैं , सब उन्हें पता है , और इसके अनुसार वह अपने उत्पाद बेच रहा है ! वैश्वीकरण के कारण शायद हमें आपत्ती नहीं करना चाहिये किन्तु चीनी माल दूसरे किसी भी उत्पाद की तुलना में मात्र बीस से पच्चीस प्रतिशत मूल्य पर उपलब्ध हैं !! तरक्की का कितना भी ढ़ोल पीट लिया जाए , भारत आज भी एक गरीब देश है । हल ही में एक ढ़ोंगी संत के भंडारे में एक समय के भोजन, एक स्टील की थाली और एक लड्डू पाने के लिये इतनी भीड़ उमड़ी कि भगदड़ में पैंसठ लोग मारे गए और हजारों घायल हुए । गरीब ही नहीं शेष लोग भी ‘एक के साथ एक फ्री ’ का आॅफर देखते ही टूट पड़ते हैं । ऐसे में यदि चीनी माल चैथाई कीमत पर मिले तो लोग दूसरा क्यों लेगें ? लेकिन इसका असर भयानक होता है । वाराणसी में बनारसी साड़ियों का परंपरागत उद्योग रहा है । कारीगर एक बनारसी साड़ी एक माह में बनाते थे जो तीन से पांच हजार रुपयों में बिकती थी । वैसी ही चीनी साड़ी आज मात्र चार सौ से सात सौ में बिक रही है और वाराणसी के कारीगर भुखमरी के कगार पर पहुंच गए है। इलेक्ट्र्ानिक उपकरणों में चीन का एकाधिकार ही हो गया है । बिजली के सामान का बाजार भी चीनी के हाथ में आ चुका है । पिछले पांच साल से देश अपना सबसे बड़ा त्योहार दीवाली चीनी लाइटिंग से मना रहा है । दैनिक उपयोग के तमाम उपकरण गैरंटी नहीं होने के बावजूद धडल्ले से बिक रहे हैं । मेड इन चाइना वाले हमारे देवी-देवताओं से बाजार अंटे पड़े हैं ! मनोरंजन का सामान, सजावट का सामान, जरुरी-गैरजरुरी सब चीन से आ रहा है !!


चीन के खतरनाक नेटवर्क को इससे समझा जा सकता है कि उसने पंजाब में अभी भी बह रही भिंडरावाले की हवा को ताड़ लिया हमारी राष्ट्र्ीय एकता को मुंह चिढ़ाते हुए भिंडरावाले से संबंधित कई तरह की सामग्री बाजार में उतार दी ! आज पंजाब में भिंडरावाले के फोटो युक्त स्टीकर , केलेन्डर, टी-शर्ट, घड़ियां , चाबी के गुच्छे, चाय-काफी के मग, आदि बड़ी संख्या में बिक रहे हैं । टी-शर्ट पर तो भिंडरावाले की एके-47 लिये फोटो छपी है जो शहरी ही नहीं गांव के युवाओं में आश्चर्यजनक रुप से लोकप्रिय है ! यह सामग्री जालंधर, पटियाला, लुधियाना या अमृतसर में ही नहीं , सरकार की नाक के नीचे, दिल्ली के बाजारों में भी बिक रही है ! खबरों में आया है कि भिंडरावाले के 20 रुपए कीमत वाले दो लाख केलेन्डर बिक चुके हैं !! ऐसी चीनी घड़ियां बिक रहीं हैं जिसके डायल पर भिंडरावाले के चित्र हैं ! हालांकि पंजाब के डीजीपी श्री पीएस गिल ने कहा है कि हमें इन गतिविधियों का पता है और हम इस पर कड़ी निगाह रखे हुए हैं !

प्रश्न केवल आर्थिक या बाजार का नहीं, सुरक्षा का है । डर इस बात का है कि हमारा एक बदनियत पड़ौसी हमारे अंदर तक घुस कर हमारे विचारों, संवेदनाओं और भावनाओं तक को सफलतापूर्वक पढ़ रहा है । इन सूचनाओं को आज वह अपने उद्योगों के पक्ष में उपयोग कर रहा है किन्तु कल भारत के खिलाफ किसी भी गतिविधि में कर सकता है । यदि वह बाजार के रणक्षेत्र में भी हमले जारी रखता है तो आने वाले दस वर्षों में हमारे अधिकांश छोटे-बड़े उद्योगों को अपना अस्तित्व बचाना संभव नहीं रहेगा । बाजार जिस तरह चीन की मुठ्ठी में है उससे उसकी योजना, दक्षता और इरादों का पता चलता है । बदनियत ताकतों ने मीना बाजार सजा लिये हैं , जिसे समझने की जरुरत है । पिछली बार हम ‘ हिन्दी-चीनी भाई-भाई’ के नारे का स्वाद चख चुके हैं । अगर हम शुतुरमुर्ग रहे तो चीन अपना काम कर गुजरेगा और हमें वापस आजादी पाने में इस बार दो सौ से अधिक साल लगेगें ।